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Thursday, April 28, 2011

ज्योतिष सीखें - भाग 3

Learn Astrology Part: 3
ज्योतिष सीखें - भाग 3
पिछली बार प्रत्येक ग्रह की उच्च नीच और स्वग्रह राशि के बारे में जाना था।  राहु और केतु की कोई राशि नहीं होती और राहु-केतु की उच्च एवं नीच राशियां भी सभी ज्योतिषी प्रयोग नहीं करते। लेकिन, फलित ज्योतिष में ग्रहों के मित्र, शत्रु ग्रह के बारे में जानना भी अति आवश्यक है। इसलिए इस बार इनकी जानकारी।


ग्रहों के नाम                मित्र                           शत्रु                        सम

सूर्य                          चन्द्र, मंगल, गुरू            शनि, शुक्र                 बुध
चन्द्रमा                         सूर्य, बुध                    कोई नहीं                शेष ग्रह
मंगल                        सूर्य, चन्द्र, गुरू                 बुध                      शेष ग्रह
बुध                               सूर्य, शुक्र                      चंद्र                      शुक्र, शनि
गुरू                          सुर्य, चंन्‍द्र, मंगल             शुक्र, बुध                 शनि
शुक्र                             शनि, बुध                    शेष ग्रह                   गुरू, मंगल
शनि                           बुध, शुक्र                      शेष ग्रह                   गुरु
राहु, केतु                      शुक्र, शनि               सूर्य, चन्‍द्र, मंगल           गुरु, बुध

यह तालिका अति महत्वपूर्ण है और इसे भी कण्ठस्थ् करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि यह तालिका बहुत बड़ी लगे तो डरने की कोई जरुरत नहीं। तालिका समय एवं अभ्याकस के साथ खुद व खुद याद हो जाती है। मोटे तौर पर वैसे हम ग्रहों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं, जो कि एक दूसरे के शत्रु हैं -

भाग 1 - सूर्य, चंद्र, मंगल और गुरु
भाग 2 - बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु

यह याद रखने का आसान तरीका है परन्तु हर बार सही नहीं है। उपर वाली तालिका कण्ठस्थ हो तो ज्यादा बेहतर है।

मित्र-शत्रु का तात्पर्य यह है कि जो ग्रह अपनी मित्र ग्रहों की राशि में हो एवं मित्र ग्रहों के साथ हो, वह ग्रह अपना शुभ फल देगा। इसके विपरीत कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या शत्रु ग्रह के साथ हो तो उसके शुभ फल में कमी आ जाएगी।

चलिए एक उदाहर लेते हैं। उपर की तालिका से यह देखा जा सकता है कि सूर्य और शनि एक दूसरे के शत्रु ग्रह हैं। अगर सूर्य शनि की राशि मकर या कुंभ में स्थित है या सूर्य शनि के साथ स्थित हो तो सूर्य अपना शुभ फल नहीं दे पाएगा। इसके विपरीत यदि सूर्य अपने मित्र ग्रहों च्ंद्र, मंगल, गुरु की राशि में या उनके सा‍थ स्थित हो तो सामान्‍यत वह अपना शुभ फल देगा

इस सप्ताह के लिए बस इतना ही। आगे जानेंगे कुण्डली का स्वरुप, ग्रह-भाव-राशि का कारकत्वक एवं ज्योतिष में उनका प्रयोग आदि।

Wednesday, April 27, 2011

ज्योतिष सीखें - भाग 2

Learn Astrology Part:2 (Hindi)
राशि, ग्रह, एवं राशि स्‍वामियों के बारे में जाना। वह अत्‍यन्‍त ही महत्‍वपूर्ण सूचना थी और उसे कण्‍ठस्‍थ करने की कोशिश करें। इस बार हम ग्रह एवं राशियों के कुछ वर्गीकरण को जानेंगे जो कि फलित ज्‍योतिष के लिए अत्‍यन्‍त ही महत्‍वपूर्ण हैं। पहला वर्गीकरण शुभ ग्रह और पाप ग्रह का इस
प्रकार है -
शुभ ग्रह: चन्द्रमा, बुध, शुक्र, गुरू हैं
पापी ग्रह: सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु हैं

साधारणत चन्‍द्र एवं बुध को सदैव ही शुभ नहीं गिना जाता। पूर्ण चन्‍द्र अर्थात पूर्णिमा के पास का चन्‍द्र शुभ एवं अमावस्‍या के पास का चन्‍द्र शुभ नहीं गिना जाता। इसी प्रकार बुध अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ होता है और यदि पापी ग्रह के साथ हो तो पापी हो जाता है।
यह ध्‍यान रखने वाली बात है कि सभी पापी ग्रह सदैव ही बुरा फल नहीं देते। न ही सभी शुभ ग्रह सदैव ही शुभ फल देते हैं। अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों जैसे ग्रह का स्‍वामित्‍व, ग्रह की राशि स्थिति, दृष्टियों इत्‍यादि पर भी निर्भर करता है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
जैसा कि उपर कहा गया एक ग्रह का अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों पर निर्भर करता है और उनमें से एक है ग्रह की राशि में स्थिति। कोई भी ग्रह सामान्‍यत अपनी उच्‍च राशि, मित्र राशि, एवं खुद की राशि में अच्‍छा फल देते हैं। इसके विपरीत ग्रह अपनी नीच राशि और शत्रु राशि में बुरा फल देते हैं।

ग्रहों की उच्‍चादि राशि स्थिति इस प्रकार है -

ग्रह
उच्च राशि
नीच राशि
स्‍वग्रह राशि
1
सूर्य,मेष
तुला
सिंह
2
चन्द्रमा,  वृषभ
वृश्चिक
कर्क
3
मंगल,   मकर
 कर्क
मेष, वृश्चिक
4
बुध, कन्या
मीन          
मिथुन, कन्या
5
 गुरू,   कर्क  
मकर 
 धनु, मीन
शुक्र,   मीन        
कन्या 
वृषभ, तुला
7
शनि,  तुला                मेष मकर, कुम्भ
8
 राहु, धनु           मिथुन
9
केतु    मिथुनधनु

उपर की तालिका में कुछ ध्‍यान देने वाले बिन्‍दु इस प्रकार हैं -
1 ग्रह की उच्‍च राशि और नीच राशि एक दूसरे से सप्‍तम होती हैं। उदाहरणार्थ सूर्य मेष में उच्‍च का होता है जो कि राशि चक्र की पहली राशि है और तुला में नीच होता है जो कि राशि चक्र की सातवीं राशि है।

2 सूर्य और चन्‍द्र सिर्फ एक राशि के स्‍वामी हैं। राहु एवं केतु किसी भी राशि के स्‍वामी नहीं हैं। अन्‍य ग्रह दो-दो राशियों के स्‍वामी हैं।

3 राहु एवं केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती। राहु-केतु की उच्‍च एवं नीच राशियां भी सभी ज्‍योतिषी प्रयोग नहीं करते हैं।

क्रमश....

Tuesday, April 26, 2011

उपयोगी टोटके

उपाय, Easy Remady,

छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। हमारे पुरुखों के पास बहुत अनुभूत उपाय थे, जिनके द्वारा वे रोग व परेषानीयों को तुरत दूर कर देते थे इस लोकप्रिय स्तंभ में कुछ उपयोगी टोटकों की विधिवत जानकारी दी जा रही है...

   नोट :

  1. लाल किताब के सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए ! अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले !

  2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए !

  3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है !

  4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा !

  5. एक दिन में एक ही उपाय करना चाहिए ! यदि एक से ज्यादा उपाय करने हों तो छोटा उपाय पहले करें ! 
   एक उपाय के दौरान दूसरे उपाय का कोई सामान भी घर में न रखें !


   किसी शुभ कार्य के जाने से पहले

रविवार को पान का पत्ता साथ रखकर जायें।सोमवार को दर्पण में अपना चेहरा देखकर जायें। मंगलवार को मिष्ठान खाकर जायें। बुधवार को हरे धनिये के पत्ते खाकर जायें। गुरूवार को सरसों के कुछ दाने मुख में डालकर जायें। शुक्रवार को दही खाकर जायें। शनिवार को अदरक और घी खाकर जाना चाहिये।

किसी भी शनिवार की शाम को माह की दाल के दाने लें। उसपर थोड़ी सी दही और सिन्दूर लगाकर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें और बिना मुड़कर देखे वापिस आ जायें। सात शनिवार लगातार करने से आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली बनी रहेगी।

गृह बाधा की शांति के लिए पश्चिमाभिमुख होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का २१ बार या २१ माला श्रद्धापूर्वक जप करें।

आर्थिक परेशानियों से मुक्ति के लिए गणपति की नियमित आराधना करें। इसके अलावा श्वेत गुजा (चिरमी) को एक शीशी में गंगाजल में डाल कर प्रतिदिन श्री सूक्त का पाठ करें। बुधवार को विशेष रूप से प्रसाद चढ़ाकर पूजा करें।                               


  शादी विवाह में विघ्न न पडने देने के लिये टोटका

शादी वाले दिन से एक दिन पहले एक ईंट के ऊपर कोयले से ष्बाधायेंष् लिखकर ईंट को उल्टा करके किसी सुरक्षित स्थान पर रख दीजिये,और शादी के बाद उस ईंट को उठाकर किसी पानी वाले स्थान पर डाल कर ऊपर से कुछ खाने का सामान डाल दीजिये,शादी विवाह के समय में बाधायें नहीं आयेंगी।


    मुकदमें में विजय पाने के लिए :

यदि आपका किसी के साथ मुकदमा चल रहा हो और आप उसमें विजय पाना चाहते हैं तो थोडे से चावल लेकर कोर्टध्कचहरी में जांय और उन चावलों को कचहरी में कहीं पर फेंक दें ! जिस कमरे में आपका मुकदमा चल रहा हो उसके बाहर फेंकें तो ज्यादा अच्छा है ! परंतु याद रहे आपको चावल ले जाते या कोर्ट में फेंकते समय कोई देखे नहीं वरना लाभ नहीं होगा ! यह उपाय आपको बिना किसी को पता लगे करना होगा !

     परेशानी से मुक्ति के लिए :

 आज कल हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है ! कारण कोई भी हो आप एक तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें थोडा सा लाल चंदन मिला दें ! उस पात्र को सिरहाने रख कर रात को सो जांय ! प्रातः उस जल को तुलसी के पौधे पर चढा दें ! धीरे-धीरे परेशानी दूर होगी !


   परिवार में शांति बनाए रखने के लिए :

 बुधवार को मिट्टी के बने एक शेर को उसके गले में लाल चुन्नी बांधकर और लाल टीका लगाकर माता के मंदिर में रखें और माता को अपने परिवार की सभी समस्याएं बताकर उनसे शांति बनाए रखने की विनती करें। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, परिवार में शांति कायम होगी।

   ईश्वर का दर्शन करने के लिये टोटका

शाम को एकान्त कमरे में जमीन पर उत्तर की तरफ मुंह करके पालथी मारकर बैठ जाइये, दोनों आंखों को बन्द करने के बाद आंखों की द्रिष्टि को नाक के ऊपर वाले हिस्से में ले जाने की कोशिश करिये, धीरे धीरे रोजाना दस से बीस मिनट का प्रयोग करिये, लेकिन इस काम को करने के बीच में किसी भी प्रकार के विचार दिमाग में नही लाने चाहिये, आपको आपके इष्ट का दर्शन सुगमता से हो जायेगा। अपने पूर्वजों की नियमित पूजा करें। प्रति माह अमावस्या को प्रातःकाल ५ गायों को फल खिलाएं।

   बनता काम बिगडता हो, लाभ न हो रहा हो या कोई भी परेशानी हो तो :

1. हर मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में बदाना (मीठी बूंदी) चढा कर उसी प्रशाद को मंदिर के बाहर गरीबों में बांट दें !

2. व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना। सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।


    सफलता प्राप्ति के लिए :

  . किसी कार्य की सिद्धि के लिए जाते समय घर से निकलने से पूर्व ही अपने हाथ में रोटी ले लें। मार्ग में जहां भी कौए दिखलाई दें, वहां उस रोटी के टुकड़े कर के डाल दें और आगे बढ़ जाएं। इससे सफलता प्राप्त होती है।

  ॰ किसी भी आवश्यक कार्य के लिए घर से निकलते समय घर की देहली के बाहर, पूर्व दिशा की ओर, एक मुट्ठी घुघंची को रख कर अपना कार्य बोलते हुए, उस पर बलपूर्वक पैर रख कर, कार्य हेतु निकल जाएं, तो अवश्य ही कार्य में सफलता मिलती है।

  ॰ अगर किसी काम से जाना हो, तो एक नींबू लें। उसपर 4 लौंग गाड़ दें तथा इस मंत्र का जाप करें रू ॐ श्री हनुमते नम:´। 21 बार जाप करने के बाद उसको साथ ले कर जाएं। काम में किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।

  ॰ चुटकी भर हींग अपने ऊपर से वार कर उत्तर दिशा में फेंक दें। प्रातरूकाल तीन हरी इलायची को दाएँ हाथ में रखकर “श्रीं श्रीं´´ बोलें, उसे खा लें, फिर बाहर जाएँ।
प्रातः सोकर उठने के बाद नियमित रूप से अपनी हथेलियों को ध्यानपूर्वक देखें और तीन बार चूमें। ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है। यह क्रिया शनिवार से शुरू करें।

    खाना पचाने का टोटका

अधिकतर बैठे रहने से या खाना खाने के बाद मेहनत नही करने से भोजन पच नही पाता है और पेट में दर्द या पेट फूलने लगता है,खाना खाने के बाद तुरंत बायीं करवट लेट जाइये, खाना आधा घन्टे में अपनी जगह बनाकर पचने लगेगा और अपान वायु बाहर निकल जायेगी।

                     
                       परम्॥ निवारण के प्रमुख स्थल

           बाला जी (मेहंदीपुर राजस्थान) - भूत प्रेत बाधा निवारण

           हुसैन टेकरी (राजस्थान) - भूत प्रेत बाधा निवारण

           पीतांबरा शक्ति पीठ (ततिया) - शत्रु विनाश

           कात्यायनी शक्ति पीठ (वृंदावन) - कुंआरी कन्याओं के शीघ्र विवाह के लिए

           शुचींद्रम शक्तिपीठ (कन्याकुमारी) - कुंआरी कन्याओं के शीघ्र विवाह के लिए

            गुह्येश्वरी देवी (नेपाल) - रोग मुक्ति

            महाकालेश्वर (उज्जैन) - प्राण रक्षा हेतु

हस्त रेखा की उत्पत्ति

जिन मनीषियों ने हस्तविज्ञान की खोज की, उसे समझा और व्यवहारिक रूप दिया, उनकी विद्वता  के ठोस प्रमाण आज भी मौजूद हैं। भारत के ऐतिहासिक युग के स्मारक हमें बताते हैं कि रोम और यूनान की स्थापना से वर्षों पूर्व इस देश के मनीषियों ने ज्ञान का इतना अमूल्य भण्डार एकत्र कर लिया था कि उसकी सराहना समूचे विश्व में हुआ करती थी, और इन्हीं विद्वानों में हस्त रेखा विज्ञान के जन्म दाता भी थे, उन्ही के बनाये हुए सिद्धान्त अन्य देशों में पहुँचे।
    हस्तरेखा से सम्बन्धित अब तक जितने भी प्राचीन ग्रंथ पाये गये हैं उनमें वेद एवं सामुद्रिक शास्त्र सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ है। यही वेद और शास्त्र यूनानी सभ्यता और ज्ञान का मूल श्रोत था। अत्यन्त प्राचीन युग में इस विज्ञान का प्रचलन चीन, तिब्बत, ईरान, और मिश्र जैसे देशों में आरम्भ हुआ लेकिन इन देशों में इसमें जो सहयोग स्पष्टता और एकरूपता हमें दिखायी देती है वह वास्तव में भारतीय सभ्यता की देन है। संसार भर में भारतीय सभ्यता को सर्वाधिक उच्च और विवके पूर्ण माना जाता रहा है। जिसे हम हस्त रेखा विज्ञान या कीरोमेंसी कहते हैं वह भारत के अलावा यूनान में भी पला और पनपा यूनानी शब्द कीर का अर्थ है, जो हाथ से विकसित हुआ हो।

   1. Evolution of Palmistry and History
    उन्नीसवीं शताब्दी में उत्पीड़न की अग्नि में भी सुरक्षित रहकर फीनिक्स ने इस ज्ञान की सुरक्षा के निरन्तर प्रयास किये और जिस विज्ञान को अन्धविश्वास घोषित किया जा चुका था, वह एक बार फिर सत्य बनकर सामने आया। इस प्रकार के अनेक प्रमाण हैं जो इसकी सत्यता को साबित करते हैं कि यह एक सत्य और प्रमाणिक विज्ञान है। ईशा से 423 वर्ष पूर्व यूनानी दार्शनिक एनेक्सागोरस कीरोमेंन्सी का उपयोग ही नहीं बल्कि शिक्षा भी देता था। इन्ही की तरह अरस्तू विलसाइड, कार्डमिस, पिल्लनी थे, जो हिस्पेनस को इस विज्ञान पर एक पुस्तक लिखकर भेंट की थी, उसमें लिखा था- यह ग्रन्थ एक ऐसा अध्ययन है जो जिज्ञासु और सुविकसित मस्तिष्क वाले व्यक्ति के पढ़ने योग्य है।
     इन विद्वानों ने जब मानव का अध्ययन किया तो मानव के चेहरे उसकी नाक, कान, आँख आदि की स्वाभाविक स्थिति भली भांति पहचान लिया। इसी प्रकार मानव की हथेली में बनी मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा की जानकारी प्राप्त करके उनकी स्वाभाविक स्थिति को मान्यता प्रदान की। इस विज्ञान की खोज और अध्ययन में उन विद्वानों ने जो साधना की, जो समय लगाया उसी के कारण वे हथेली की रेखाओं और चिह्नों को ये नाम दे सकें। जिस रेखा को मानसिकता का सम्बन्धी समझा उसे मस्तिष्क रेखा का नाम दिया। स्नेह से सम्बधित रेखा को हृदय रेखा तथा जीवन की अवधि से सम्बन्धित रेखा को जीवन रेखा का नाम दिया इसी प्रकार चिह्न और पर्वत के भी उन्हीं के अनुरुप नाम दिये।
हस्त रेखा विज्ञान की सत्यता

    किसी विषय के बारे में तभी विश्वास होता है, जब उसे अंतरात्मा द्वारा देख या समझ लिया जाय। एक अणु को भी अपने अस्तित्व में अध्ययन के अयोग्य ठहराना उचित नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति यह धारणा बना ले कि हस्त विज्ञान विचारणीय विषय नहीं है तो यह उसका कोरा भ्रम होगा। क्योंकि अनेक बड़ी-बड़ी अत्यन्त महत्वपूर्ण सच्चाइयां और वास्तविकताएं जिन्हें कभी नगण्य समझा जाता था वे अब असीमित शक्ति का साधन बन गयी हैं।
     हस्तविज्ञान के अध्ययन में और उसे विकसित करने में अनेक दार्शनिक और वर्तमान काल के वैज्ञानिकों ने भी इस ओर ध्यान दिया है। जब हम मनुष्यों की क्रियाशीलता और उसके पूरे शरीर पर प्रभाव के बारे में विचार करते हैं तो यह जानकर आश्चर्य नहीं होता, कि जिन्हे वैज्ञानिकों ने पहले प्रमाणित किया था कि मानव मस्तिष्क और उसके हाथों के बीच जितने भी स्नायु हैं, उतने शारीरिक व्यवस्था में और कहीं भी नहीं हैं। मनुष्य जब हाथों से कुछ करता है तो मस्तिष्क भी सोंचना आरम्भ कर देता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वभाव, संस्कार, प्रकृति और मानसिक स्थिति के व्यक्तियों के हाथों में भिन्न-भिन्न अन्तर होता है। संसार में अनेक आश्चर्यजनक सच्चाइयां हैं, शताब्दियों के कालचक्र ने इस विज्ञान पर धूल जमा दी थी लेकिन मानव के विवेक ने उसे पुनः खोज निकाला और अब इस विज्ञान की सच्चाई पर विश्वास होने लगा है। यह प्रमाणित हो गया है कि हाथ की रेखाएँ एक ऐसा अमिट सत्य है जो व्यक्ति के जीवन और उसकी प्रकृति को स्पष्ट रुप से प्रकट कर देती है। आज भौतिक युग में जो लोग इस विज्ञान की सच्चाई के प्रभाव को जानना चाहते हैं। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि हमें यह विज्ञान शताब्दियों पूर्व प्राप्त हुआ था और वह विज्ञान आज भी अभीष्ट सिद्ध है।
 

ज्योतिष सीखें - भाग 1

Learn Astrology Part:1
ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये?
कुछ जिज्ञासु मेहनत करके किसी ज्यातिषी को पढ़ाने के लिये राज़ी तो कर लेते हैं,
लेकिन गुरूजी कुछ इस तरह ज्योतिष पढ़ाते हैं कि जिज्ञासु ज्योतिष सीखने की बजाय भाग खड़े होते हैं। बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।
अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है। ज्योतिष सीखने के इच्छुक नये विद्यार्थियों को कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
  1. शुरूआत में थोड़ा-थोड़ा पढ़ें।
  2. जब तक पहला पाठ समझ में न आये, दूसरे पाठ या पुस्तक पर न जायें।
  3. जो कुछ भी पढ़ें, उसे आत्मसात कर लें।
  4. बिना गुरू-आज्ञा या मार्गदर्शक की सलाह के अन्य ज्योतिष पुस्तकें न पढ़ें।
  5. शुरूआती दौर में कुण्डली-निर्माण की ओर ध्यान न लगायें, बल्कि कुण्डली के विश्लेषण पर ध्यान दें।
  6. शुरूआती दौर में अपने मित्रों और रिश्तेदारों से कुण्डलियाँ मांगे, उनका विश्लेषण करें।
  7. जहाँ तक हो सके हिन्दी के साथ-साथ ज्योतिष की अंग्रेज़ी की शब्दावली को भी समझें।
अगर ज्योतिष सीखने के इच्छुक लोग उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखेंगे, तो वे जल्दी ही इस विषय पर अच्छी पकड़ बना सकते हैं।

ज्‍योतिष के मुख्‍य दो विभाग हैं - गणित और फलित। गणित के अन्दर मुख्‍य रूप से जन्‍म कुण्‍डली बनाना आता है। इसमें समय और स्‍थान के हिसाब से ग्रहों की स्थिति की गणना की जाती है। दूसरी ओर, फलित विभाग में उन गणनाओं के आधार पर भविष्‍यफल बताया जाता है। इस शृंखला में हम ज्‍यो‍तिष के गणित वाले हिस्से की चर्चा बाद में करेंगे और पहले फलित ज्‍योतिष पर ध्यान लगाएंगे। किसी  बच्चे के जन्म के समय अन्तरिक्ष में ग्रहों की स्थिति का एक नक्शा बनाकर रख लिया जाता है इस नक्शे केा जन्म कुण्डली कहते हैं। आजकल बाज़ार में बहुत-से कम्‍प्‍यूटर सॉफ़्टवेयर उपलब्‍ध हैं और उन्‍हे जन्‍म कुण्‍डली निर्माण और  अन्‍य गणनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है। पूरी ज्‍योतिश नौ ग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है।
सारे भविष्‍यफल का मूल आधार इनका आपस में संयोग है। नौ ग्रह इस प्रकार हैं -

ग्रहअन्‍य नामअंग्रेजी नाम
सूर्यरविसन
चंद्रसोममून
मंगलकुजमार्स
बुधमरकरी
गुरूबृहस्‍पतिज्‍यूपिटर
शुक्रभार्गववीनस
शनिमंदसैटर्न
राहुनॉर्थ नोड
केतुसाउथ नोड

आधुनिक खगोल विज्ञान (एस्‍ट्रोनॉमी) के हिसाब से सूर्य तारा और चन्‍द्रमा उपग्रह  है, लेकिन भारतीय ज्‍योतिष में इन्‍हें ग्रहों में शामिल किया गया है। राहु और केतु गणितीय बिन्‍दु मात्र हैं और इन्‍हें भी भारतीय ज्‍योतिष में ग्रह का दर्जा हासिल है।

भारतीय ज्‍योतिष पृथ्‍वी को केन्द्र में मानकर चलती है। राशिचक्र वह वृत्त है जिसपर नौ ग्रह घूमते हुए मालूम होते हैं। इस राशिचक्र को अगर बारह भागों में बांटा जाये, तो हर एक भाग को एक राशि कहते हैं। इन बारह राशियों के नाम हैं- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्‍या,  तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। इसी तरह जब राशिचक्र को सत्‍ताईस  भागों में बांटा जाता है, तब हर एक भाग को नक्षत्र कहते हैं। हम नक्षत्रों  की चर्चा आने वाले समय में करेंगे।

एक वृत्त को गणित में 360 कलाओं (डिग्री) में बाँटा जाता है। इसलिए एक राशि, जो राशिचक्र का बारहवाँ भाग  है, 30 कलाओं की हुई। फ़िलहाल ज़्यादा गणित में जाने की बजाय बस इतना जानना
काफी होगा कि हर राशि 30 कलाओं की होती है।
हर राशि का मालिक एक ग्रह होता है जो इस प्रकार हैं -

राशिअंग्रेजी नाममालिक ग्रह
मेषएरीज़मंगल
वृषभटॉरसशुक्र
मिथुनजैमिनीबुध
कर्ककैंसरचन्द्र
सिंहलियोसूर्य
कन्यावरगोबुध
तुलालिबराशुक्र
वृश्चिकस्कॉर्पियोमंगल
धनुसैजीटेरियसगुरू
मकरकैप्रीकॉर्नशनि
कुम्भएक्वेरियसशनि
मीनपाइसेज़गुरू


क्रमश... 

Thursday, April 21, 2011

GURUTVA KARYALAY: हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का चमत्कार

GURUTVA KARYALAY: हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का चमत्कार: "Hanumaan Chalisa Evam Bajarang Baan kaa Chamatkar आज हर व्यक्ति अपने जीवन मे सभी भौतिक सुख साधनो की प्राप्ति के लिये भौतिकता की दौड मे भागत..."

सिर्फ राम एक साधारण नाम नहीं, एक महा मंत्र हैं।

धर्म शास्त्रो में भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक महामंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल
Ram Bhakt Hanuman
जाती है।

राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है-

नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलंबन एकू।।

अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं।


स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया है-

रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:।

गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।।

इड निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्।

स्कंदपुराण/नागरखंड

अर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम का कीर्तन करता है, वह यहां कृतकार्य होकर जाता है और अंत में भगवान विष्णु का पार्षद बनता है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो शक्ति भगवान की है उसमें भी अधिक शक्ति भगवान के नाम की है। नाम जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहराई तक उतरती है। इससे मन और प्राण पवित्र हो जाते हैं, बुद्धि का विकास होने लगता है, सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, मनोवांछित फल मिलता है, सारे कष्ट दूर हो जाते हैं, मुक्ति मिलती है तथा समस्त प्रकार के भय दूर हो जाते हैं।

सर्व ऐश्वर्य प्रद-लक्ष्मी-कवच

Sarv Ashvary prad lakshami kavach


सर्व ऐश्वर्य प्रद-लक्ष्मी-कवच

श्री मधुसूदन उवाच:-
गृहाण कवचम् शक्र सर्वदुःखविनाशनम्।
परमैश्वर्यजनकं सर्वशत्रुविमर्दनम्।।

ब्रह्मणे च पुरा दत्तम् संसारे च जलप्लुते।
यद् धृत्वा जगतां श्रेष्ठः सर्वैश्वर्ययुतो विधिः।।

बभूवुर्मनवः सर्वे सर्वैश्वर्ययुतो यतः।
सर्वैश्वर्यप्रदस्यास्य कवचस्य ऋषिर्विधि।।

पङ्क्तिश्छन्दश्च सा देवी स्वय पद्मालया सुर।
सिद्धैश्वर्यजपेष्वेव विनियोगः प्रकीर्तित।।

यद् धृत्वा कवचं लोकः सर्वत्र विजयी भवेत्।।

।।मूल कवच पाठ।।

मस्तकम् पातु मे पद्मा कण्ठं पातु हरिप्रिया।
नासिकाम् पातु मे लक्ष्मीः कमला पातु लोचनम्।।

केशान् केशवकान्ता च कपालम् कमलालया।
जगत्प्रसूर्गण्डयुग्मं स्कन्धं सम्पत्प्रदा सदा।।

ॐ श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा पृष्ठं सदावतु।
ॐ श्रीं पद्मालयायै स्वाहा वक्षः सदावतु।।

पातु श्रीर्मम कंकालं बाहुयुग्मं च ते नमः।।

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः पादौ पातु मे संततम् चिरम्।
ॐ ह्रीं श्रीं नमः पद्मायै स्वाहा पातु नितम्बकम्।।

ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा सर्वांगं पातु मे सदा।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मां पातु सर्वतः।।

इस  मंत्र के पाठ से मां महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

Monday, April 18, 2011

GURUTVA KARYALAY: हनुमानजी के पूजन से कार्यसिद्धि भाग : 2

GURUTVA KARYALAY: हनुमानजी के पूजन से कार्यसिद्धि भाग : 2: "Hanuman worshiping for achievement, Hanuman puja for achievement, Hanuman veneration for achievement, Hanuman Pooja for achievement, fainanc..."

GURUTVA KARYALAY: हनुमान मंत्र से भय निवारण

GURUTVA KARYALAY: हनुमान मंत्र से भय निवारण: "हनुमान मंत्र भय विनाशक, Hanuman Mantra for fear Prevention, Hanuman Mantra for fear deterrent, Hanuman Mantra for fear Destroyer, Hanuman Ma..."

GURUTVA KARYALAY: पंचमुखी हनुमान का पूजन उत्तम फलदायी हैं

GURUTVA KARYALAY: पंचमुखी हनुमान का पूजन उत्तम फलदायी हैं: "पंचमुखी हनुमान-पूजन, પંચમુખી હનુમાન-પૂજન, ಪಂಚಮುಖೀ ಹನುಮಾನ-ಪೂಜನ, பம்சமுகீ ஹநுமாந-பூஜந, పంచముఖీ హనుమాన-పూజన, പംചമുഖീ ഹനുമാന-പൂജന, ਪਂਚਮੁਖੀ ਹਨੁਮਾ..."

GURUTVA KARYALAY: हनुमानजी के पूजन से कार्यसिद्धि भाग : 1

GURUTVA KARYALAY: हनुमानजी के पूजन से कार्यसिद्धि भाग : 1: "Hanuman worshiping for achievement, Hanuman puja for achievement, Hanuman veneration for achievement, Hanuman Pooja for achievement, fainanc..."

Tuesday, April 12, 2011

रामरक्षा स्तोत्र

Ram Raksha Stotram, Rama Rakasha Stotra

रामरक्षा स्तोत्र

अस्य श्रीरामरक्षा स्तोत्र मन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।
श्री सीतारामचंद्रो देवता । अनुष्टुप्‌छंदः। सीता शक्तिः।
श्रीमान हनुमान्‌कीलकम्‌। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।


अथ ध्यानम्‌:

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम ।



चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌॥१॥


ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्‌ ॥२॥


सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम्‌।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥


रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥४॥


कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥५॥


जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥


करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥७॥


सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्‌ ॥८॥


जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥


एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्‌ ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌॥१०॥


पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥११॥


रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥


जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम्‌।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥


वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥


आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥१५॥


आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌।
अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥१६॥


तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥


फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥


शरण्यौ  सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥


आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्‌॥२०॥


सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥


रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥२३॥

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥२४॥


रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्‌।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥२५॥


रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌॥२६॥


रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२७॥


श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥


श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥


माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥


दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम्‌ ॥३१॥


लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥


मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥


कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥


आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥


भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌।
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥


रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥


राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥


॥ श्री बुधकौशिक विरचितम् श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्ण ॥

GURUTVA KARYALAY: गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अप्रैल 2011 में प्रकशित ...

GURUTVA KARYALAY: गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अप्रैल 2011 में प्रकशित ...: "April 2011 free monthly Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Ma..."

GURUTVA KARYALAY: जब कबीरजी को मिली राम-राम मंत्र दीक्षा?

GURUTVA KARYALAY: जब कबीरजी को मिली राम-राम मंत्र दीक्षा?: "जब कबीरजी को मिली राम-राम मंत्र दीक्षा? लेख साभार: राम नवमी विशेषगुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अप्रैल-2011)http://gurutvajyotish.blogspot.com/ &n..."

GURUTVA KARYALAY: जब श्रीराम ने किय विजया एकादशी व्रत?

GURUTVA KARYALAY: जब श्रीराम ने किय विजया एकादशी व्रत?: "जब श्रीराम ने किय विजया एकादशी व्रत?लेख साभार: राम नवमी विशेषगुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अप्रैल-2011)http://gurutvajyotish.blogspot.com/ ..."

राम स्तोत्र के पाठ से दूर होगी परेशानी ।


हर मनुष्य के जीवन में परेशानियों का आना-जाना लगा ही रहता है। कई बार समस्याएं इतनी अधिक हो जाती हैं की इंसान टूट सा जाता है उसे कोई हल सुझाई नहीं देता। ऐसे में सिर्फ भगवान का सहारा ही उसे बचा सकता है।

Ram Bhakt Hanuman

 ऐसी मान्यता है कि भगवान राम का नाम लेने मात्र से सभी समस्याओं का निदान संभव है। यदि नित्य राम स्तोत्र का पाठ किया जाए तो ऐसी कोई मनोकामना नहीं जिसे भगवान राम पूरी नहीं करते। राम स्त्रोत भगवान राम की उपासना करने बहुत ही सरल व सहज माध्यम है-
राम स्तोत्र
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।
जप विधि
  • सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर प्रभु श्रीराम का पूजन करें।
  • भगवान राम की मूर्ति के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस स्त्रोत का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।
  • आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।
  • एक ही समय, आसन व माला हो तो यह स्तोत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।

Monday, April 11, 2011

GURUTVA KARYALAY: राम नाम की महिमा

GURUTVA KARYALAY: राम नाम की महिमा: "राम नाम महत्व क्या हैं?, The importance of Ram Nam, Significance of Ram Name, Benefit of chanting Ram Nama, why Chant Ram Nam, The importanc..."

Saturday, April 9, 2011

मानसिक तनाव दूर करने हेतु वास्तु उपाय भाग:1

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वास्तु: मानसिक अशांति निवारण उपाय भाग:1

आज की भागदौड़ से भरी जिंदगी मैं हर व्यक्ति अपने काम में व्यस्त हैं।
जिस कारण से अधिकतर लोग मानसिक शांति से ग्रस्त होते है। व्यस्ता एवं भौतिकता से भरी दिनचार्या में व्यक्ति के पास अपने स्वयं के लिए भी वक्त ही नहीं होता है। यदि आप इस तरह की परेशानी से ग्रस्त हैं और आप मानसिक कष्ट तनाव इत्यादी से मुक्ति चाहते हैं, तो इस वास्तु सुझावो को जीवन में अवश्य आजमाकर देख ले आपको निश्चित लाभ प्राप्त होगा।
* अपने शयन कक्ष में रात में झूठे बर्तन न रखें। सोने से पूर्व बर्तनो को साफ करले। इससे स्त्री वर्ग का स्वास्थ्य प्रभावित होता हैं व धन का अभाव बना रहता हैं।
* मानसिक तनाव हो, जाए तो कमरे में शुद्ध घी का दीपक जला  कर रखें।
* शयन कक्ष में झाड़ू इत्यादि सफाई की सामग्री न रखें। इससे व्यर्थ की चिंता रहेगी।
* यदि मानसिक तनाव अधिक हो जाएं तो, तकिए के नीचे लाल चंदन रखकर सोएं लाभ प्राप्त होगा।
* सुबह-संध्या पूजन में घी और कपूरका दिप अवश्य जलाये। जिससे निवास स्थान या व्यवसायिक स्थानो से नकारात्मक उर्जा दूर होती हैं।
* शास्त्रोक्त नियमो के अनुशार संध्या समय अर्थात धूप-दिप के समय सोना, खाना, स्नान करना वर्जित माना गया हैं। अतः इन कार्यो को करने से त्यागदे।
*  संध्या समय अर्थात धूप-दिप के समय हाथ-पैर धो सकते हैं।
* धूप-दिप के समय अपने निवास स्थान या व्यवसायिक स्थानो पर सुगंधित व पवित्र अगरबत्ति, धुप इत्यादि अवश्य करें।
क्रमशः........

Friday, April 8, 2011

Important beliefs and practices in astrology

The core beliefs of astrology were prevalent in parts of the ancient world and are epitomized in the Hermetic maxim, "as above, so below". Tycho Brahe used a similar phrase to summarize his studies in astrology: suspiciendo despicio, "by looking up I see downward".

There are several techniques of forecasting in Western astrology. Transits, the most popular, are based on the actual motion of planets moving through a sign or house within the horoscope. Another technique, progressions are based on the movements of the planets after birth, symbolically related to a time period or cycle of life. Most Western astrologers no longer try to forecast actual events, but focus instead on general trends and developments. Skeptics respond that this practice of western astrologers allows them to avoid making verifiable predictions, and gives them the ability to attach significance to arbitrary and unrelated events, in a way that suits their purpose. By comparison, Hindu astrologers make predictions about both trends and events.

In the past, astrologers often relied on close observation of celestial objects and the charting of their movements. Modern astrologers use data provided by astronomers which are transformed to a set of astrological tables called ephemerides,showing the changing zodiacal positions of the heavenly bodies through time.

How to Profession analysis in astrology ? (Part:2)

Career astrology is judged as per our horoscope cast using ancient vedic astrology techniques. Career is followed a lot in todays life and everyone wants to know about their career here astrology steps in and helps you in deciding your career paths also ups and downs in your career progress. As per vedic astrology when it comes to career two very important things to be seen in a horoscope are your lagna(lagnesh), your 10th house. When we see the 10th house we see the lord of the 10th house its placement different aspects on the lord of the 10th house, the aspects on the 10th house itself,the sign falling in the 10th house planets placed in your 10th house.
See their respective strengths in your D9 navansh chart of your horoscope and also your D10 chart. Once you have accessed all these chart then you start your prediction on how the respective persons career going to be. By this method on placements of different planets you can judge the persons inclination towards a particular field, as its been also seen that aspects transits play a huge role. different planets give you different results when placed in the 10th house. for example sun sitting in the 10th house make it very strong in that house we call it digbali meaning it has attained stregth. People with this kind will try to attain good position,it wont be very easy for them to work under some one as they will like to be incharge in a high position and things under their control. Mars can make you go into the business of property, jupiter aspecting your 10th house can make you go into management related jobs.
So we have seen that planets ruling, controlling, aspecting the 10th house or its lord play an important role. For current situation on career we also take into account the current transit pattern of the planets for more accuracy and to the moment prediction. Also you need to take into consideration the lagna as lagna is responsible for over growth of a person and his or her basic qualities are derived from it. You also need to see the dasha running at present, the sub dasha as a benefic dasha running and getting connected to your 10th house or your 10th house lord will always give your career a boost. As I have seen on so many occasions that the dasha or subdasha when not getting connected to the 10th house will give you not good results as compared to when they all get connected to your 10th house or its lord.

Careers by planet
  1. Sun authority, scientists, leaders, directors, government employeers
  2. Moon nursing, travelling, marine, cooks, restaurants, import/export.
  3. Mars construction, soldiers, police, surgeons, engineers.
  4. Mercury writer, teaching, clerks, accountants, editors, transport, astrologers.
  5. Jupiter finance, law, treasury, scholars, priests, humanitarian.
  6. Venus beauty, art, music, entertainment industry, sex industry, hotels.
  7. Saturn real estate, labour, agriculture, building trades, mining, monk.
  8. Rahu researchers, engineers, physicians, medicine/drugs, speculator.
  9. Ketu occult sciences, enlightenment, religion, secret affairs, poisons, metaphysics.

Thursday, April 7, 2011

How to Profession analysis in astrology ? (Part:1)

Jyotish and careee

The core beliefs of astrology were prevalent in parts of the ancient world and are epitomized in the Hermetic maxim, "as above, so below". Tycho Brahe used a similar phrase to summarize his studies in astrology: suspiciendo despicio, "by looking up I see downward".
There are several techniques of forecasting in Western astrology. Transits, the most popular, are based on the actual motion of planets moving through a sign or house within the horoscope. Another technique, progressions are based on the movements of the planets after birth, symbolically related to a time period or cycle of life. Most Western astrologers no longer try to forecast actual events, but focus instead on general trends and developments. Skeptics respond that this practice of western astrologers allows them to avoid making verifiable predictions, and gives them the ability to attach significance to arbitrary and unrelated events, in a way that suits their purpose. By comparison, Hindu astrologers make predictions about both trends and events.
In the past, astrologers often relied on close observation of celestial objects and the charting of their movements. Modern astrologers use data provided by astronomers which are transformed to a set of astrological tables called ephemerides,showing the changing zodiacal positions of the heavenly bodies through time.

Where is came the word of astrology?

The word "astrology" comes from the Latin term astrologia "astronomy", which in turn derives from the Greek noun astrology, from astron "constellation" or "celestial body" and -nology-logia "the study of".The Greek words astrov astron and star astêr were both used for any point of light in the sky. The phrase planets stars planets starfish"wandering stars" was applied to the seven visible planets (including the Sun and Moon) because of their observable movement against the fixed stars. Thus, all were 'stars' in the Classical sense, explaining the prefix astro- in both astrology and astronomy.

Tuesday, April 5, 2011

what is astrology?

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Astrology is a system of divination founded on the notion that the relative positions of celestial bodies are signs of or—more controversially among astrologers—causes of destiny, personality, human affairs, and natural events.The primary astrological bodies are the sun, moon, and planets; although astrology is commonly characterized as "reading the stars", the stars actually play a minor role. The main focus is on the placement of the seven planets relative to each other and to the signs of the zodiac, though the system does allow reference to fixed stars, asteroids, comets, and various mathematical points of interest as well. As a craft, astrology is a combination of basic astronomy, numerology, and mysticism. In its modern form, it is a classic example of pseudoscience.

NINE PLANETS

Historically, astrology was regarded as a technical and learned tradition, sustained in royal courts, cultural centers, and medieval universities, and closely related to the studies of alchemy, meteorology, and medicine. Astrology and astronomy were often synonymous before the modern era, with the desire for predictive and divinatory knowledge one of the motivating factors for astronomical observation. Astronomy began to diverge from astrology in the Muslim world at the turn of the 2nd millennium, and in Europe from the Renaissance through the Enlightenment in 18th century. Eventually, astronomy distinguished itself as the empirical study of celestial objects and phenomena. In the latter half of the 20th century astrology experienced a resurgence of popular interest as a major component of the New Age movement.

Astrologers have long debated the degree of determinism in astrology and the limits of astrology's application. Some astrologers believe the planets control fate directly, others that they determining personalities. These positions have been criticized[by whom?] for denying free will. Many astrologers contend that there is no direct influence, only an acausal correlation between the planets and human affairs.

The scientific community bases astrology's pseudoscientific status in its making predictive claims which either cannot be falsified or have been consistently disproved. Astrology cannot be classified as science because it lacks empirical support, supplies no hypotheses, and resolves to describe natural events in terms of scientifically untestable supernatural causes, Psychology explains much of the continued faith in astrology as a matter of cognitive biases