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प्रथम शैलपुत्री
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर-2010)
नवरात्र के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। पर्वतराज (शैलराज) हिमालय के यहां पार्वती रुप में जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा जाता हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
भगवती नंदी नाम के वृषभ पर सवार हैं। माता शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।
मां शैलपुत्री को शास्रों में तीनो लोक के समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना गया हैं। इसी कारण से वन्य जीवन जीने वाली सभ्यताओं में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना की जाती हैं जिस सें उनका निवास स्थान एवं उनके आस-पास के स्थान सुरक्षित रहे। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मूल मंत्र:-
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
ध्यान मंत्र:-
वन्दे वांछितलाभायाचन्द्रार्घकृतशेखराम्। वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्।
पूणेन्दुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटाम्बरपरिधानांरत्नकिरीठांनानालंकारभूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधंराकातंकपोलांतुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितम्बनीम्। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
स्तोत्र:-
प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर तारणीम्। धन ऐश्वर्य दायनींशैलपुत्रीप्रणमाम्हम्।
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन। भुक्ति मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्।
कवच:-
ओमकार: मेशिर: पातुमूलाधार निवासिनी। हींकारपातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी। श्रींकारपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी। हुंकार पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत। फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मां शैलपुत्री का मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को सदा धन-धान्य से संपन्न रहता हैं। अर्थात उसे जिवन में धन एवं अन्य सुख साधनो को कमी महसुस नहीं होतीं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नवरात्र के प्रथम दिन की उपासना से योग साधना को प्रारंभ करने वाले योगी अपने मन से 'मूलाधार' चक्र को जाग्रत कर अपनी उर्जा शक्ति को केंद्रित करते हैं, जिससे उन्हें अनेक प्रकार कि सिद्धियां एवं उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2011)
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